बुधवार, नवंबर 14, 2012

मैडम मोरी मैं नहीं कोयला खायो !


भारत में हर रोज भ्रष्ट्राचार और घोटालों से भले ही देश पीड़ित हो पर इसने कईयों की रचनात्मकता को भी बल दिया है | लोग व्यंग रच अपने आप को मलहम लगा लेते हैं, भले ही इससे भ्रष्टतंत्र पर कुछ असर ना पड़े | 

पिछले दिनों जब कोयला घोटाला पुरजोर पर सुर्ख़ियों मैं था तब मेल में यह मिला था | 
मैडम मोरी मैं नहीं कोयला खायो !
विपक्षी दल सब बैर पड़े हैं,   बरबस मुख लिपटायो !
चिट्ठी- विट्ठी इन बैरिन ने लिखी, मोहे विदेश पठायो !
मैं बालक बुद्धि को छोटो,  मोहें सुबोधकांत फसायो !
हम तो कुछ बोलत ही नाहीं, सदा मौन रह जायो !
इसलिए मनमोहन से        मौन सिंह कहलायो !
लूट विपक्षी बैंक भर दीने, कालिख हमरे माथे लगायो !
हम तो कटपुतली हैंतुम्हरी, अंडर अचीवर कहलायो !
मैडम भोली बातें सुन मुस्काई, मनमोहन खींच गले लगायो !

बदला तो कुछ नहीं है पर समाचार माध्यमों में इसकी चर्चा मंद हो गई है शायद कुछ माखन वहां भी पहुँच गया है|

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