हिन्दू धर्म में ईश्वर के दर्शन करने के बाद दर्शनार्थी द्वारा परिक्रमा की
परंपरा है | वैदिक काल से चली आ रही यह परंपरा फल प्राप्ति हेतु महत्वपूर्ण अवश्य
है | आइये समझते हैं कि यह परम्परा क्यों है तथा नारद पुराण के अनुसार किस भगवान की कितनी
प्रदक्षिणा करनी चाहिए |
ब्रह्माण्ड में हर ग्रह किसी बड़े ग्रह के चारों ओर घूमता है जैसे कि चंद्रमा
पृथ्वी के चारों ओर
प्रदक्षिणा करता है, पृथ्वी सूर्य की करती है | भक्त अपनी शक्ति ईश्वर से प्राप्त करता है
इसलिए यह प्रदक्षिणा स्वाभाविक है |
![]() |
Photo Courtesy : Divineindia.org |
प्रदक्षिणा प्राय घड़ी की सुइयों की दिशा यानिकि क्लोक वाईज की जाती है |
परिक्रमा करते समय दायां हाथ मूर्ति की दिशा में रहना चाहिए | मार्ग में चलते वक्त
ईश्वर का नाम जपते रहना शुभ समझा जाता है |
प्रदक्षिणा जहां से प्रारंभ की जाती है वहीँ पर
पूरी की जाती है, केवल शिव की प्रदक्षिणा को पूर्ण नहीं किया जाता | शिव मंदिर में
जहां गौमुख से भगवान को चढ़ाया जल निकलता है वहाँ परिक्रमा को छोड़ देने या विपरीत
दिशा में परिक्रमा पूरी करने का प्रावधान है |
शक्ति की देवी दुर्गा की एक प्रदक्षिणा, गणेश की
तीन, विष्णु की चार एवं सूर्य देव की सात परिक्रमाएं करनी चाहिए | यज्ञ के बाद
वेदी की तीन परिक्रमाएं करने से पूर्ण फल मिलता है | पवनपुत्र हनुमानजी की तीन
प्रदिक्षणाएं करने से सभी प्रकार के भय
दूर होते है | सोमवती अमावस्या के दिन पीपल की १०८ परिक्रमाएं करनी चाहिये |
Other Posts :
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें