हाल ही में दशहरा और दिवाली गई | इन दोनों पर्वो पर हमने माना कि फलां फलां
तरह के रावण
को मार देना चाहिए | जैसे किसी ने कहा महंगाई के रावण का वध करो
, किसी ने कहा भ्रष्टाचार के रावण को
परास्त करो ... | लेकिन के हम रावण के चरित्र की विवेचना करते है ? क्या हम में से
अधिकांश रावण के नजदीक नहीं हैं ?
पहले रावण के विषय में जो मान्यताएं हैं उन्हें लिस्ट करते हैं | रावण बहुत
ज्ञानी था, रावण शिव (ईश्वर) का परम भक्त था , शास्त्रों का ज्ञाता था , धन का लोभी था, उसे अपना साम्राज्य बढ़ाना था ,
परस्त्री के प्रति लोलुप था ....
यदि एक मानव मन की आकांक्षाओं की सूचि बने जाये तो इनमे से अधिकतर मिल जाएंगी
| हम सामान्यतः ईश्वर में आस्था रखते हैं | आमतौर पर हम मानते हैं कि हमें हमारे
क्षेत्र का ज्ञान दूसरों से अधिक है| अपने अधिकार क्षेत्र के विस्तार में लगे रहते
है, चाहे वह नौकरी में पड़ के रुप में हो, व्यापार में मार्केट शेयर के रुप में हो,
समाज में प्रभाव के रुप में हो | इस विस्तार को हासिल करने के लिए जो भी बन पड़ता
है करते हैं |
धन को पाने के लिए सही गलत सब करते है | नौकरी, व्यवसाय, माता पिता से हिस्सा,
शेयर, प्रोपर्टी में निवेश और ना जाने क्या क्या ..? धन कितना भी मिल जाये और अधिक की लालसा लगी
रहती है | सुविधाएं कितनी भी मिल जाये और पाने की इच्छा रहती है |
क्या यही सब रावण में नहीं था ? लेकिन रावण में एक अच्छाई भी थी जिसे गौर करना
चाहिए | उसमे स्वार्थ की भावना संभवतः उतनी नहीं थी जो कई मनुष्यों में सुलभ है | जिसकी वजह से माना जा सकता है कि जिस रावण का
पुतला हम जलाते है , जिसकी बुराई करते हम थकते नहीं हम उससे भी गए गुजरे है |
राम को युद्ध के पूर्व पूजा करनी थी तब रावण ने ही पूजा संपन्न करवाई थी और
राम को विजय का आशीर्वाद दिया था | रावण अगर स्वार्थी होता तो यह आशीर्वाद ना देता
क्योंकि राम का युद्ध से उससे ही होना था | लेकिन एक ब्राह्मण के रुप में उसने वही
किया जो कि अपेक्षा रखी जाती है |
दरअसल हम अपनी जिंदगी खपा देते हैं हर उस चीज को हासिल करने के लिए जो हमारे
पास नहीं है और जो मिल गया है, उसमे कोई रूचि नहीं है , उसकी कद्र ही नहीं रहती |
जब तक नौकरी नहीं मिली प्रयत्न करते हैं | मिल जाती है तो दूसरी ढूंढने लगते हैं |
घर में हमेशा घुटन महसूस करते है क्योंकि वह है , उससे भागना चाहते हैं | जब बाहर होते है तब उसी घर की याद आती है |
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